Wednesday, February 22, 2017
देवता कौन है ।
पुरुषसूक्तमें आया यज्ञेनयज्ञमयजन्त देवा: का अर्थ के सम्बन्धमें वहुत भ्रान्ति है । वह कौन सा यज्ञ था । देवता कौन हैँ । वे यज्ञ द्वारा कैसे यज्ञ का यजन किया । उसका परिणाम क्या हुआ । इसीमें वहुत सारे वैज्ञानिक तथ्य छिपिहुइ है । यहाँ यज्ञ का अर्थ अग्नि मेँ घृत आहुति नहिँ है । यज् सङ्गतिकरणे से यहाँ यज्ञ का अर्थ अग्नि और सोम का सङ्गतिकरण है जिससे सर्वहुतयज्ञ का विकाश होता है. इसलिये ऐतरेयब्राह्मणम् मेँ कहागया है अग्नि वै देवानामवमो विष्णुपरम । तयोरन्तरेण सर्वादेवताः । अग्नि 8 है । रुद्र 11 है । आदित्य 12 है । अश्वी 2 या इन्द्र और प्रजापति को मिला देने से 33 देवता हो जाते हैँ । इन्हिके विषयमें बृहदारण्यक उपनिषदमें कहा गया है । सर्वहुतयज्ञसे पञ्चीकरण होता है । इसिलिये यज्ञेनयज्ञमयजन्त देवा: कहागया है । पञ्चीकरणसे अणु, रेणु, सूक्ष्म, स्थुल क्रमसे भुतोँका विकाश होता है । यही भुतोँका प्रथम धर्म है । इसिलिये कहागया है कि तानि धर्माणि प्रथमान्यासन् । ते ह नाकं महिमानः सचन्ते में सचन्ते शव्द सच् समवाये अर्थमें व्यवहार कियागया है । सर्वहुतयज्ञमें यह 33 देवता को 33 अहर्गण कहा जाता है । यह 33 अहर्गण में 8 अग्नि और दिक् सोम को मिलाकर 9 को त्रिवृत् कहते हैं, जिसे पृथ्वीलोक भी कहाजाता है । यह विष्णुका प्रथम विक्रम है । विशति प्रविशति अर्थमें सव में प्रविष्ट तत्व को विष्णु कहायाता है। 10 से 15 अन्तरिक्षलोक और विष्णुका द्वितीय विक्रम है । 16 से 21 स्वर्गलोक और विष्णुका तृतीय विक्रम है । इसिलिये विष्णुको त्रिविक्रम कहागया है । यह सवसे छोटा होनेसे वामन कहलाता है । 17अहर्गणको ब्रह्मविष्टप नाचिकेत स्वर्गः कहाजाता है । 18 अहर्गणको ऋतधामा आग्नेयस्वर्गः कहाजाता है । 19अहर्गणको अपरोदकः वायव्यस्वर्गः कहाजाता है । 20 अहर्गणको अपराजित ऐन्द्रस्वर्गः कहाजाता है । 21अहर्गणको विष्णुविष्टप नाकस्वर्गः कहाजाता है । इसे ऐन्द्रः ऐन्द्राग्नी स्वर्गः भी कहते हैं । 22अहर्गणको अधिद्यौ वारुणस्वर्गः कहाजाता है । 23अहर्गणको प्रद्यौः मुच्युस्वर्गः कहाजाता है । 24अहर्गणको रोचन ब्राह्मस्वर्गः कहाजाता है । 25अहर्गणको इन्द्रविष्टप प्रत्यस्वर्गः कहाजाता है । यही सूर्यबेधी कहलाता है । 18 से 24 तक सप्त वै देवस्वर्गाः । 25अहर्गणतकको 3 वार चयन करनेसे न स पुनरावर्तते - न स पुनरावर्तते । 21वाँ अग्नि सौरविद्युत कहलाता है । 25 वाँ अग्नि सौम्यविद्युत कहलाता है। उसके उपर 33 तक सोम है । इसिसे सूर्यमण्डलका वैज्ञानिक विश्लेषण किया जा सकता है । प्रजापति वै सप्तदश में 17अहर्गणका हि निर्देश है । यह युप भी कहलाता है । इसीसे मैने Nuclear Physics in the Vedas नामक निबन्ध लिखा था ।
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